abhishek testing
2021-03-04 -
16 April 2021, 08:04 PM
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ज़िन्दगी की हकीकत से जो पाला पड़ा है।
अहमियत बचपन की तब समझ आयी।
जिस लड़कपन की चाह में बचपन बिताया,
उस लड़कपन ने अच्छे से नानी याद दिलाई।
ज़िम्मेदारियों की बेड़ियों ने पाँव जो जकड़ा,
तो समझ आया कि पतंगों के मांजे क्यों कच्चे थे।
बड़े हो गए यूँही बड़े होने की चाह में,
अब समझ आया हम तो बच्चे ही अच्छे थे।
छिले हाथों का दर्द छिले दिल से अच्छा था।
तब साथियों की आँखों का आंसू भी सच्चा था।
कद बड़े हो गए, हम बड़े हो गए,
दिल आज छोटा हो गया, तब बस बच्चा था।
आज की बोली में तोल के मिठास है,
तब बातों में मासूमियत के लच्छे थे।
बड़े हो गए यूँही बड़े होने की चाह में,
अब समझ आया हम तो बच्चे ही अच्छे थे।
वो छोटी मोटी बातों में ज़िद कर दिखाना।
अपना रूठ जाना सब का पीछे आके मनाना।
आज खुद रूठ लेते हैं, खुद मान जाते हैं।
अखरता है किसी का भी पीछे ना आना।
दुनिया में निकले तो मायने समझ आये,
वर्ना बचपन में मम्मी के हम सबसे प्यारे बच्चे थे।
बड़े हो गए यूँही बड़े होने की चाह में,
अब समझ आया हम तो बच्चे ही अच्छे थे।
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जिसने भी बचपन बड़े होने की चाह में गँवाया
बड़े होके हर किसीको यही समझ आया।
बचपन की कहानियों में सुकून था और छांव थी,
लड़कपन ने तो घर और गाड़ी के लिए खूब जलाया।
मासूमियत की जगह जब दुनियादारी ने छीनी,
तो जाना कि बचपन के वादे क्यों सच्चे थे।
बड़े हो गए यूँही बड़े होने की चाह में,
अब समझ आया हम तो बच्चे ही अच्छे थे।
Love,
Lipi Gupta
Copyright: Lipi Gupta,08/04/2018, 17:25 PM IST
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